Wednesday, June 6, 2012

RURAL JOURNALISM

शहरों में पत्र पत्रिकाओं की कमी नहीं क्योंकि यहाँ  न तो पत्रकारों की और न पत्र पत्रिकाएँ पढने वालों की कमी  है . सभी नामी गडामी पत्रकार शहरों में ह़ी रहते हैं .उनकी गलती नहीं है क्योंकि उन्हें घटनाओं से जुड़े हुए समाचार  चाहिए  और घटनाएँ घटित होती है शहरों में . शहर वालों को इससे क्या मतलब कि गजोधर के  बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं क्योंकि शहर से आने वाली मास्टरनी नहीं आ रही हैं . बहादुर के जानवरों को खुरपका हो गया है या फिर लखन के मोहल्ले में माता फैल गयी हैं . भला शहरों में इन समाचारों को कौन पढ़ेगा .
 समाचार तब बनेगा जब मंत्री का कुत्ता बीमार हो जाये और जानवरों के अस्पताल में दवाई न मिले , पब्लिक स्कूल में पानी न मिले , विधान सभा या फिर लोकसभा में हंगामा हो रहा हो . भीड़ भाड़ वाले चौराहे पर कोई  धरना पर बैठ रहा  हो  . अब बताइए गाँव पंचायत में लाठी चली या  समझौता हुआ इससे कोई समाचार बनेगा ? 
शहरी समाचार गाँव तक पहुँचते जरूर हैं परन्तु गाँव वालों के लिए ज्यादा प्रासंगिक  नहीं होते इसलिए उन्हें पढ ने वाले मिल भी जाये तो उनमे मतलब की बात नहीं मिलती . ऐसा नहीं कि गावों के विषय  में समाचार छपते नहीं हैं परन्तु उनके इकठ्ठा करने में बहुत मेह्नत  लगती है और उसके लिए कम लोग ही तैयार होते हैं . भरी धुप में , ठिठुरते जाड़े में या फिर बरसते पानी में कितने शहरी पत्रकार गाँव गली में घूमते दिखाई पड़ते हैं ?
कहने का तात्पर्य यह है कि शहरी अखबार बनते हैं शहर वालों के द्वारा, शहरों पर आधारित  और शहर वालों के लिए. हमें चाहिए ऐसे अखबार जो देश की 72 प्रतिशत आबादी की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा कर सकें .  

Monday, June 4, 2012

KALA DHAN AUR BHRASHTACHAR

बाबा रामदेव और अन्ना हजारे द्वारा चलाये जा रहे अभियान की अनदेखी करके हमारी सरकार इस मुगालते में है कि  जनता की याददाश्त कमजोर होती है और कुछ दिनों में सब भूल जाएगी .  सर्कार को  याद रखना चाहिए कि आज से 37 साल पहले लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने जो सवाल उठाये थे फिर से ताज़ा हो गए हैं . भ्रष्ट लोगों के नाम उजागर करना, ऐसे लोगों को लोकसभा और विधान सभा से वापस बुलाना, व्यवस्था में आमूल चूल  परिवर्तन करना यही तो था संपूर्ण क्रांति का नारा. आज की सरकार  कहती है कि विदेशों में जमा  काले धन का पता चल रहा है और वह वापस भी आ   रहा है . आश्चर्य की बात यह है कि  सरकर को यह नहीं पता है कि  कितना काला धन बाहर जमा है, वह किसका है और कितन धन अब तक आ चुका है . माननीय उच्च  न्यायालय  के आदेशों के बाद भी सरकार ने नाम नहीं बताये हैं . कला धन वापस आने का एक रास्ता एफ. डी . आई हो सकता है और शायद इसी लिए बाबा रामदेव ने इसे काले धन की चाभी कहा है . इसका मतलब है कि विदेशी पूंजी निवेश करने वाले वाही लोग हो सकते हैं जिन्होंनी बाहर कला धन  जमा किया है . सरकार न तो कला धन जमा करने वालों के नाम बताएगी और न विदेशी पूंजी निवेश करने वालों के . हमारे गाँव में कहावत है 'यह जांघ खोलो तो लाज और वह जांघ खोलो तो लाज '.